चलो,खेल बचपन का फिर दोहराते हैं,
चलो,खेल बचपन का फिर दोहराते हैं,
कुछ जोड़ते, कुछ घटाते हैं,
कुछ बिगाड़ते, कुछ बनाते हैं,
चलो,खेल बचपन का फिर दोहराते हैं,
लहरों ने तोड़े जो घरौंदे,
फिर से उनको बनाते हैं,
उम्मीदों के दरवाजे और
खिड़कियाँ ख़्वाबों की लगाते हैं,
जमी है धूल आईने पर उसको हटाते हैं,
दरिया में डूबा है सूरज ,बाहर खींच लाते हैं,
न आये बाहर तो सुनहरे रंग का
सूरज ख़ुद बनाते हैं,
अँधेरे आसमां को चाँद,तारों से सजाते हैं,
अँधेरों के पर्दे हटाते हैं,
चलो, दरख़्त खुशियों वाले लगाते हैं,
कतारों में होकर खड़े प्रार्थना प्रभु से कर आते हैं,
बेरंग हो रही है ज़िन्दगानी रंग बिरंगा इसको बनाते हैं,
चलो, अश्कों को घटाकर, मुस्कुराहटें जोड़ आते हैं,
खेल वो बचपन का फिर से दोहराते हैं।"
