चित्रण
चित्रण
“उसकी व्याख्या क्यूँ नहीं करते हमें?” एक बार किसी दावत में किसी ने मुझसे पूछा |
मै थोड़ी देर सोचा की क्या वर्णन करूँ उसका
“अरे भई दिखने में कैसी है?” तभी एक और सज्जन ने उत्तेजना दर्शाई |
मैंने कहा "कह नहीं सकता, भ्रान्ति में हूँ” और फिर कुछ गुनगुना शुरू किया...
वो सांवली है, केश घुंगराले है उसके, ओंठ रक्त रंजित,
नहीं नहीं रंग साफ़ है, लम्बी है, नहीं, प्यारे से नाटे कद की है, शायद?
क्या?
हां, अम्म…
गालों में कमल मानिंद लालिमा है, नहीं, टमाटर जैसे रसवान हैं,
गोल-गोल, पिलपिले,
नाक चमकीली है, उसी चमक के नीचे एक गहरा भूरा तिल भी है,
स्वस्थ है, खुश है, जीवन से सराबोर लगती है?
हँसी… उसकी हँसी… थोड़ी शूकर के जैसी, कुछ मेरे जैसी है,
ज़्यादातर खिलखिलाहट भरी है और ठहाकों में उत्सवों की अग्निक्रीड़ा है,
चुहल जो लोटपोट करदे,
ताने कटाक्ष से भरे; किन्तु द्वेषपूर्ण? निर्दयी?
कतई नहीं !
संजीदा? हाँ ज़रूर,
केवल प्रेम और सौहार्द, यही छुपा है उसके मन में,
छोटा मोटा कपट भी हैं और छद्म भी, किन्तु बेहद ही निर्दोष
सामान्य वक्ष की है मगर सीने में समुद्र समाए रहती है,
दुबली है पर ठोड़ी जब छाती से लगाकर हंसती है तो
उसके के नीचे गुलाबी रंग का एक लोथड़ा दीखता है, मानो एक और ठोड़ी हो,
भुजाएँ मांसल, कलाइयाँ लचीलीं, अंगुलियाँ पैनी, नहीं-नहीं, मोटी और गद्देदार,
बाल लंबे, घने, पीतल जैसे, मखमली, सीध...
“गज़ब करते हो यार, कभी कुछ बकते हो कभी कुछ” एक आदमी चिल्लाया ।
मै तो अपनी सचाई व्यक्त कर रहा हूँ बस
तुम्हारे आयाम के सत्य-निरिक्षण के खाँचे में मेरी असलियत का द्रव नहीं ढल पाएगा।
“छोड़ो ये बकवास और उसका नाम कहो मूर्ख!” एक महाशय चिंघाड़े
नाम कल्पना है, कदाचित, अ… नहीं नहीं, कामना।

