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Gairo

Others

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Gairo

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ऊँघ

ऊँघ

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एक अजीब सा सपना था वह 

मगर याद नहीं ज़रा भी 

हां कुछ क़तरे हैं उसके

जो चिंगारियो की तरह उठते हैं 

इनकी चमक में कोई अलग ही जीवन दिखता है मुझे 

ऐसे दृश्य दिखते हैं जिन्हें मैंने कभी जिया ही नहीं 

फिर भी क्यों वह असल यादों जैसे लगते हैं? 


दिन का ही वक्त रहा होगा

मुश्किल से कोई एक डेड झपकी आई होगी

उन्हीं ऊंघने की हरकतों के दौरान

उस थोड़े से अंतराल में ही 

ये सब काम हुआ

शायद किसी और का अफ़साना

मेरे दिमाग में अंजाम हुआ।

 

सोचता हूं हर बार की तरह हीं

कि दोबारा आंखें मूंदकर अगर

नींद को ज़ेहन में छा जाने दूँ

पहले कभी मुमकिन हुआ जो नहीं

उसको मुकम्मल कराऊं अभी

पर ऐसा हो ना पाया कभी 

और इसी तरह 

उस नींद की फ़िराक़ में

बेचारे मेरे सपने भी सपने रह जाते हैं।


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