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Gairo

Abstract

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Gairo

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हलवा

हलवा

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घी में भुनती, रेत सी महीन सूजी की मर्म चुम्बन करती, 

भीमी मीठी सुगंध,संयत निशा समीर पे सवार हो कर 

अपनी प्रचंड तीक्ष्णता सेहर अवरोध तोड़,सघन बाधाओं को भेद,

प्रमादित द्वारों के प्रत्यक्ष लापरवाह विवरों से,या झरोखों की झीनी, 

ज़ंग खाई, कमज़ोर धातुज चादरों से,प्रवेश लेकर,घ्राण के मृदुल नथूनों को गुदगुदाती,

सहलाती,निज उर में छितर जाती,कुछ इस मानिंदकि मन मानसरोवर में उत्सव मचा हो जैसे,

उपलक्ष में जिसकेस्वयं आमोदेश्वर ने मिष्टामृत रचा है आज कोई।


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