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Gairo

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Gairo

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पुरुषार्थ

पुरुषार्थ

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अबे ओ दूसरों की भावनाओं से जुदा

सही सोच से मुड़ा

ज़मीन से कहाँ है तू जुड़ा

आ सुनले ये फ़रमान ए ख़ुदा

तू हँसता ही बेहूदा, 

तुझको क्या कोई बीमारी है,

सुनता है जब तू, 

रिश्ते की बात पर उसकी, 

लड़की उसको घर देखने आ रही है,

क्या इसमें मर्दानगी की हानि है?

यह बात तूने न जानी है 

कैसा तू क्षुद्रमति प्राणी है

यह संकल्पा मैने ठानी है

अब गत

बदलेगी तेरी भी

अवगत

करूंगा मै

जब तक

नहीं तुझको इन

प्रकाशवान शब्दों के ढेरी से

भले ही देरी से

पर बात घुसेगी

कपाल के तेरे 

सारे छेदों से

हृदय तक

मस्तिक्ष से

ऊपर जिसके

अनुकूलन की परत 

तूने चढ़ाई है

बहुत बुरी तरह वो 

रतुआ खाई है

इसको ख़रोंच कर 

ज़रा सोचकर

झाड़ने में ही तेरी भलाई है

पुरानी मानसिकताओं से मत पूछकर

कुछ बूझ कर

अब कूच कर

नई सोच से सींच कर

रणभूमि की मृदा को भिगा तू

नवजीवन का बीज डूबा तू

प्रेम पौध ऊगा तू

मनवाणी से सर्व को हँसा तू

अपने जैसों को सही राह दिखा तू

तब चौड़ी छाती फड़केगी

पौरुष की वह्नि लहकेगी

चरित्र की कलियाँ फूटेंगी

ख़ुशबू तेरे अस्तित्व की

समस्त जग में मुदित डोलेगी।


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