चिंता तिमिराछन्न हृदय में
चिंता तिमिराछन्न हृदय में
जबसे नेह लगाया प्रभु जी,
बन आकाश दीप जलते हो।
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जीवन में ठोकर खाईं है।
ठोकर अब भी खा जाता हूँ।
किंतु पतन से क्षण भर पहले,
तव अवलंबन पा जाता हूँ।
जीवन के हर कंटक पथ पर,
बाह थाम संग संग चलते हो।
जबसे नेह लगाया प्रभु जी,
बन आकाश दीप जलते हो।
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अरे तुम्हीं तो आज उपेक्षित,
मन का सूनापन हरते हो।
चिंता तिमिराछन्न हृदय में,
आशा का प्रकाश भरते हो।
मेरी प्यास बुझाने वाले,
धवल हिमल बनकर गलते हो।
जब से नेह लगाया प्रभु जी,
बन आकाश दीप जलते हो।