छांव
छांव
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गांव की छांव में,
हम मिले थे जहां
जिंदगी में ना कोई,
कमी थी वहां।
हम थोड़े सी कमाई में,
खुशहाल थे !
हर चेहरे पर दिखता था,
अपना सा प्यार !
हम कहां आ गए,
आज शहरों में हम !
जहां जीवन के नाम पर,
घुटते है दम !
तंग गलियों में गुज़रे,
अब जीवन यहां !
जहां जीने के बदले में,
मरते है हम !