परिंदा
परिंदा


उन्मुक्त गगन में उड़ने दो,
उड़ने दो इन परिंदों को !
आज़ाद हुए है पिंजरे से,
उड़ान अभी है नई-नई !
अभी वक़्त लगेगा उड़ने में,
सीख जाएंगे ये उड़ना फिर !
ज़रा देखो इनकी उड़ान को,
नहीं थकते हैं कभी उड़ने से !
इन्हें आसमान को छूने में,
नहीं डिगता इनका लक्ष्य कभी !
उड़ने दो इन परिंदों को,
नहीं पिजरे में अब क़ैद करो