वेदना अन्तर्मन की...
वेदना अन्तर्मन की...
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वेदना अन्तर्मन की तूने,
जान पाई ना कभी.!
नाम की ख़ातिर ही तूने,
मुझ को अंगसात की .!
चाहा था मैंने दिल से तुमको,
माना तुमको अपना था.!
छोड़कर सबकुछ मैं,
पास तेरे आ गई.!
तुम समझ न पाए कभी,
भावना मन की मेरी.!
मैं तुम्हारी भावना को,
ठेस कभी लगने ना दी.!