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अजय केशरी

Others

5.0  

अजय केशरी

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नारी व्यथा...

नारी व्यथा...

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कितनी नज़रों ने है ताका,

अंदर तक मुझे घूरा है

नारी देह को गिद्ध नज़र से,

सबने मुझको लुटा है

नज़रों ही नज़रों में लगता,

लूटी मेरी इज़्जत है

तार-तार कर दिया है इज़्जत,

कहाँ-कहाँ नही घूरा है

नज़रों से बिध गया शरीर है,

नही जान अब इसमें है

अपने देह से घृणा हो रही,

जैसे मैं खिलौना हूँ


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