ख़्वाहिश
ख़्वाहिश
ख़्वाहिशें इतनी न पालो,
जो सबब बन जाय..!
ख़्वाहिशें इतनी ही पालो,
जो पुरी हो जाए !
जिंदगी बन जाती जहुन्नम,
पुरी करते ख़्वाहिशें !
चाहते कहां होती पूरी,
रोज़ नए एक जन्म लेते !
जिंदगी ऐसे ही चलती,
सपने टूटते बुनते है !
सपने ही हमें जीने की,
रोज़ नई उम्मीदें देते !