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अजय केशरी

Abstract

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अजय केशरी

Abstract

वक़्त पर कटाक्ष

वक़्त पर कटाक्ष

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वक़्त पर कटाक्ष कर

गुज़र रहा जो समाज पर !

तू क़लम आज़ाद है

लिख तो इस समाज पर !


जो गलत है दिख रहा,

उस पर तू विचार कर !

शब्द में पिरो के तीर,

दुश्मनों पर वार कर !


तू कलम आज़ाद है,

लिख तो इस समाज पर !

शब्द से जुड़ेंगे शब्द,

काफ़िला बन जाएगा !


तब समाज में नया,

आएगा बदलाव तब !

तू कलम आज़ाद है,

लिख तो इस समाज पर !


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