STORYMIRROR

अजय केशरी

Abstract

2  

अजय केशरी

Abstract

वक़्त पर कटाक्ष

वक़्त पर कटाक्ष

1 min
472


वक़्त पर कटाक्ष कर

गुज़र रहा जो समाज पर !

तू क़लम आज़ाद है

लिख तो इस समाज पर !


जो गलत है दिख रहा,

उस पर तू विचार कर !

शब्द में पिरो के तीर,

दुश्मनों पर वार कर !


तू कलम आज़ाद है,

लिख तो इस समाज पर !

शब्द से जुड़ेंगे शब्द,

काफ़िला बन जाएगा !


तब समाज में नया,

आएगा बदलाव तब !

तू कलम आज़ाद है,

लिख तो इस समाज पर !


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Abstract