चारों धाम यहीं है
चारों धाम यहीं है


खुशनशीब होती है वो माँ जिसे
उम्र की ढ़लती शाम के
आखरी प्रहर में
अपनों के अपनेपन के वटवृक्ष की
छाँव नशीब होती है
आराम की पथारी और
सुकून के लम्हें जीने मिलते है
अपनों के उपर खुद की जवानी
और सारे सुख कुरबान करने वाली
माँ को चाहे मखमली बिछौना या
सुख ओ आराम ना दे सको कोई बात नहीं
कम से कम सीना छलनी करने वाले शब्द
या वृद्धाश्रम की वेदना कभी ना देना
चारों धाम ना करो बस दिन में छू लो
माँ बाप के चरन एक बार
पुण्य पाओगे, फ़ल मिलेगा उसी क्षण
स्वर्ग यहीं है, मंदिर यहीं है,
भगवान भी यहीं है
मत भटकना इंसान इधर-उधर।