चाहत
चाहत
चाहत केरा बीज की, बड़ी अनूठी रीत !
नैन नीर सूँ पल्लवे, मन की मन से प्रीत !!
बीज मिले जो प्रेम का, सब जग दूँ छिड़काय !
फ़सल न उपजे प्रीत की, प्रेम न कहीं बिकाय !!
नैनन मग पिय आय के, हृदय कियौ जब वास !
भूख-प्यास सब मिट गई, पिय लागे बस ख़ास !!
सात सुरों के मेल से, बजता ज्यूँ संगीत !
उर तंत्री के नाद से, झूमें मन जब प्रीत !!
जीवन वारूँ उस घड़ी, पिय -दरशन जब होय !
जीवन लगता व्यर्थ ही, सम्मुख पिया न तोय !!
प्रेम-आग जब मन लगे, हाल बुरा तब होय !
लाख जतन सब जन करे, रोक सके ना कोय !!
