चाहत मेरी
चाहत मेरी
ज़ुल्फ़ें बंधा न करो तुम
हवाएँ नाराज़ रहती है
कुछ इतराके जब चलती हो तुम
तो कदम लड़खड़ा जाते हैं।
तेरी खूबसूरती की तारीफ
जब भी करने की कोशिश है करे
कम्बख्त लफ़्ज़ों की
कमी हर बार है पड़ी।
सोचता हूँ हर रोज़ की
जब इतने हँसी चेहरे हैं
इस जहाँ में।
तो मेरी निगाहें सिर्फ
तुझे क्यों ढूंढ़ती है !!