बचपन मेरा
बचपन मेरा
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मेर बचपन की शामें कुछ
ज़्यादा ही लम्बी हुआ करती थी
वो बचपन के खेल कुछ
ज़्यादा मज़ेदार हुआ करते थे
वो बेफिक्र ज़िन्दगी का सुकून शायद
बचपन में ही नसीब हुआ करता था !
अब तो ना वो बचपन रहा
ना वो ज़िन्दगी
और ना वो शाम का पता चलता है!
शायद इसी को वक़्त का बदलना कहते है
शायद वक़्त अपने आप में ही सिमट रहा है !!
