चाहत की फुहार
चाहत की फुहार
तन्हा शाम के साये में कोफ़ी की लज़्जत संग आए हो याद तुम बेइन्तहाँ लिखी थी एक दिन हम दोनों ने इश्क की सौगात मिलकर आज मैंने कोरे पन्नों पर तुम्हारे प्रति चाहत की फुहार लिखी है..
महज़ कविता न समझना एक दास्ताँ हमने तुम्हारी अदाओं पर कुर्बान होती हमारी मुस्कान की लिखी है, इश्क में खोते हमदोनों के जुनून की इन्तेहाँ लिखी है...
नहीं लिखी तुमसे मिली दूरियों की वेदना, न यादों से उमसती सिसकियाँ लिखी बस मरहमी रात में एक ही खटिया पर सोते स्वप्न बुनने की घड़ीयाँ लिखी है...