बूढ़ापे की सनक
बूढ़ापे की सनक
बुढ़ापा
जिंदगी का ऐसा दर्द होता है
जिसका इलाज
किसी वैध - हकीम के पास नहीं होता।
बैठकर दर्पण के सामने
सजता - सँवरता
अपने आपको साठ की उम्र में
पैंतीस का समझता।
लोग कहते बूढ़ा सठिया गया
कैसी-कैसी सनक पालता,
उठकर के आधी रात में
जॉगिंग को निकल जाता,
जब तब बच्चों पर चिल्लाता।
कैसा ये उम्र का पड़ाव है,
बढ़ता रहता जिंदगी से लगाव,
मैं कहता हूं भाई,
बुढ़ापा जीवनानुभवों की किताब है।
ज्ञान का अथाह समंदर है,
इससे अपना जीवन संवारो।
दोस्त! एक दिन
सबकी उम्र भी ढल जाएगी,
निर्बल होगी काया सबकी,
बूढ़ापे को सनक कह मज़ाक मत बनाओ।
प्रेम भाव से करो सेवा ये हमारे आदर्श हैं,
ये मत भूलो आज ये अशक्त,सनकी,सठियाये लगते हैं,
कल यही वक्त सबका ही आएगा।