बूंदें
बूंदें


बूंदें कितनी भारी है आज बारिश की
कितनी जानी पहचानी सी
हथेली में कुछ मिनट खेल के
फिर बह जाती है पानी सी
देखती है बीते पल इनमें
मुस्कुराती आखें मेरी कुछ नम
गीली गीली बूंदें ये अनुरागी
दिल को सेके मेरे मद्धम
इनकी छम छम में छिपी है
खनकती हँसी प्रिय तुम्हारी
एक रोज़ जब एक टक निहारे हमने
समस्त सहर एक साथ थी गुज़ारी
खिड़की पे बैठी हूँ इन बूंदों को गिनते
सहस्त्र हैं ये जैसे है यादें तुम्हारी
कल बारिश से कह दूँगी ना लायें अब यादें
अब कल लाये संग दस्तक तुम्हारी