STORYMIRROR

Dinesh Sen

Tragedy

3  

Dinesh Sen

Tragedy

बुरी लत

बुरी लत

1 min
195

खोया जमाना शैतानों में

भीड़ लगी है मयखानों में।

आदी हुआ है मनुष नशे का

ज्यों बंद पड़ा हो पैमानों में।।


आते हैं परिणाम सभी के

अच्छे और जो भी हैं बदी के।

करते फिर भी नित नित ग़लती

ढीले पड़ गए पाबंदी में।।


घर जेवर सब नित नित बिक गए

बिक गए सारे नित नित हार।

तब भी चले करने को नशा

मानो कहें आ बैल मुझे मार।।



Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Tragedy