बटुआ
बटुआ
पति के बटुए पर
होता हक़ हमारा
उसी बटुए से हम
चलाती है घर सारा
कोई भी हो त्योहार
बटुए पर होता है
सारा दारोमदार
आखिर यही तो करता
हमारा सुखी संसार
ये अलग है कि आज
हुई है हम सशक्त
आज पैसा रहता
हमारे पास हर वक़्त
लेकिन जो आनंद
पति के बटुए से
पैसा लेने में आता है
वो मज़ा अपने बटुए
से भी नहीं मिलता है
क्योंकि इसी बटुए में
वो हल्की सी
नोक झोंक छुपी रहती है
इसी पर सुखी जीवन की
बुनियाद टिकी रहती है।