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Priti Chaudhary

Romance

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Priti Chaudhary

Romance

बसंत ऋतु विशेष

बसंत ऋतु विशेष

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बसंती हवा तन को महका रही है,

ऋतु मधुमास की मन बहका रही है।

धरा का श्रृंगार देख मुग्ध हुआ गगन,

प्रेम ज्वाला को यह ऋतु दहका रही है। 


पुनः जी उठे हैं बुजुर्ग, पुराने दरख़्त,

नृप बन गए पाकर ताज ओ तख़्त,

पुष्पों का रक्त वर्ण मनमोहक है बहुत

भ्रमर की गुँजार मन को भा रही है।


खिल गए सरसों के पुष्प पीले -पीले,

हृदय में मधुर मिलन के स्वप्न हैं सजीले,

तरु प्रतीत होते हैं जैसे गुलदस्ते,

कोकिला मानो प्रेम राग गा रही है।


हर वस्तु पर है प्रेम ऋतु का असर,

कलियों के अधरों को चूमे भ्रमर,

नवसृजन का देखो आया है मौसम,

प्रेयसी प्रेमी को निकट बुला रही है।


सोंधी- सोंधी सी यह बसंती बयार,

तरु ने फैलाए हैं शाखाओं के हार,

सुशोभित सौंदर्य सुमधुर है बहुत,

ऋतुराज की सवारी निकली जा रही है।


पंछियों का कलरव मन को बहुत भाए,

मानो कानों में प्रेम धुन कोई गाए,

देख-देख बसंत ऋतु की छटा निराली,

हृदय की धड़कन बढ़ती जा रही है।


बसंती हवा तन को महका रही है,

ऋतु मधुमास की मन बहका रही है।


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