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Prahlad mandal

Drama Inspirational Thriller

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Prahlad mandal

Drama Inspirational Thriller

बसंत आया है

बसंत आया है

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टूट बिखर के झड़ रहे हैं पत्ते,

लगता है कोई खड़ा हैं नग्न वदन।

कहीं झूम रहे हैं सरसों,

तों कहीं दिख रहे हैं गेहूं में गमढ़।


आम की बगिया में शौर मचाते 

दिख रहे हैं मंजर।

कोयल की अब मुंह खुली,

वो भी कर रहे हैं चहल पहल।


इतनी जो शौर शराबा है,

शायद बसंत आया है।।

कहीं दर्द हैं तो कहीं,

खुशियों की हैं ढेर।।

फिर भी झुमता है वह पेड़,

जिनके अंग में नहीं है वस्त्रों के ढेर।


धैर्य बनाकर कर रहा सामना,

कभी पूर्व तो कभी पश्चिम की हवाओं का।

नई कलियां की राह देख रहा,

कभी उत्तर तो कभी दक्षिण की हवाओं का।

बहुत रंग रंगे लग रहे हैं,

शायद वसंत आया है।


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