बस तुमको मैं ही चुनूं
बस तुमको मैं ही चुनूं
इतना तरसता हुआ जीवन
सरस क्यूँ नहीं हो जाता
सूखे-बंजर खेतो में भी
सावन क्यूँ नहीं बरस जाता
वीरान पड़े इस जीवन में
आखिर तू क्यूँ नहीं आ जाता
पतझड़ के इस मौसम में
तू क्यूँ नहीं आखिर आ जाता
सांझ भरी एक बदली थी
आखिर क्यों ना वो बरस पाई
उड़ा ले गई दुश्मन बयार
फिर क्यूँ वापस ना आ पाई
एक बार समझौता हुआ
मेरा मेरे दिल से यारों
तू दूर हुआ तो क्या हुआ
मेरे दिल ने कहा बस उसे ही पुकारों
बार बार बस लौट रही प्रतिध्वनि मेरी
निस्तभ इस धरा को क्यूँ लगी है बेड़ी
हृदय भी मेरा तड़प रहा कब आयेगा इसे सुकूं
दिल कहता बार बार बस तुमको मैं ही चुनूं
