बरगद
बरगद


यह जो
बरगद का पेड़ तना है -
सैंकड़ों शिराएं
धरती की छाती में गाड़े
जाने कब से खड़ा है;
यह जो
बरगद का पेड़ तना है -
अनगिनत शाखों पातों का
विस्तृत वितान ताने
न जाने कब से खड़ा है;
यह जो
बरगद का पेड़ तना है -
घन छायादार सही
दे पाता किंतु बयार नहीं,
अकड़ा अकड़ा सा यह
न जाने कब से खड़ा है;
दूब जो पसरी जाती मैदानों में
बिरले ही उग पाती
इसके आंचल में;
अपने अहम् का भार लिए यह
न जाने कब से खड़ा है;
यह
बरगद का पेड़ घना है,
साए में फूटे कोंपल को
किंतु
सूरज की प्यास है,
एक किरण की आस है,
निर्लिप्त योगी सा पर
य
ह न जाने कब से खड़ा है;
इस बरगद की शाखों पर भी
हमने
झूले डाले हैं,
ऊंची ऊंची पींगें ली हैं;
तज अमराई
पर कोयल ना आई
नीरसता इसकी
तनिक न उसको भाई;
ना होता किंचित भी विचलित
ऐसे ही यह
न जाने कब से खड़ा है;
यह जो
बरगद का पेड़ तना है -
जितना ऊपर
उतना ही धरती के भीतर,
निर्विकार सब बूझ रहा
न जाने कब से ऐसे ही खड़ा है;
यह जो
बरगद का पेड़ तना है -
ना जाने कब से यूं ही खड़ा है
थकता नहीं यह,
पकता नहीं यह,
ऐसे ही
चुक जाता है,
बरगद -
योगनिद्रा में लीन
बस चुपके से मर जाता है ।