बंजर धरती.....
बंजर धरती.....
बंजर होकर पूछ रही थी
धरती अपने बारे में ....
क्या फिर से मेरे अंदर से
जल की धारा फूटेगी ......
दबी हुई मेरे अंदर से
एक बूंद पानी की छलकेगी....
फिर से पौधे अंकुरित होंगे
क्या फूलों की बगिया महकेगी .....
शोर मचायेंगी तितलियाँ फ़िर से
और भंवरे फूलों पर बैठेगें.....
पड़ी हुई मैं बंजर सी
क्या फिर से हरी भरी हो जाऊंगी .....??
शपथ तुझे है जल की धारा
बाहर तुझको आना होगा .......
मेरे इस बंजर पन को
आज तुझे मिटाना होगा ......
बंजर होकर पूछ रही
धरती अपने बारे में.......