STORYMIRROR

Abishake mandhania

Romance Classics

4  

Abishake mandhania

Romance Classics

बनारस की हवाओं में

बनारस की हवाओं में

1 min
214

कैसे रोकता खुद को

मोहब्बत करने से उसके

शहर बनारस की हवा के

हर रूक में इश्क बहता है


कैसे कहूं उससे कि वह धड़कन

बनकर मेरे दिल में रहता हैं

उसे भी हमसे हुईं थी

एक तरफा मोहब्बत लेकिन

हमें भी उससे प्यार था


हमें बनारस के हर घाट पर

और उसे बनारस की गलियों

में हमारा इंतजार था


हमारे मुंह से निकला हर शब्द

मेरे इश्क को कहता है

कैसे कहूं कि वह धड़कन

बनकर मेरे दिल मैं रहता है


कहने को तो बहुत कुछ था

लेकिन कुछ कह ना सके

इश्क के दरिया तो दो थे

लेकिन कभी बह ना सके


दिलों की बातें एक दूसरों

को कभी बता ना सके

मोहब्बत तो बहुत थी हमें

लेकिन कभी जता न सके


इश्क की राह पर चलने

वाला अक्सर दर्द रहता है

कैसे कहूं उससे कि वह धड़कन

कर मेरे दिल में रहता है।


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Romance