ब्लैकहोल
ब्लैकहोल
तुम्हारे लिए उमड़ते एहसास..
तुम्हारे लिए पनपता प्रेम..
तुम्हारे लिए बिलखती पीड़ा..
तुम्हारे लिए ही ये सब..
अपने अंदर ही अंदर समेट कर..
मैं बन गयी हूँ कोई "ब्लैकहोल "
...
अंतर है बस इतना
उस अंतरिक्ष ब्लैकहोल से..
प्रकाश भी लीन हो जाता है मगर.
उसमें से कुछ लौटता नहीं
और मुझ तक अब कुछ...
पहुँचता नहीं...
