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V. Aaradhyaa

Abstract Fantasy

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V. Aaradhyaa

Abstract Fantasy

छोटा सा दरिया

छोटा सा दरिया

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यूँ वैसे तो वो हमें अपनी पलकों पर बिठाना चाहता है!

हमें अपने साथ हर महफिल में ले जाना चाहता है;


छोटा सा दरिया सही पर समंदर से बगावत के लिए,

हर एक कतरा मानो अब अपना सिर उठाना चाहता है!


कलयुग की अहिल्या को भी यह डर सताने लगा है कि,

कोई क्षद्मवेशी ऋषि गौतम उसे पत्थर बनाना चाहता है!


लगता है अकेले चलते चलते थक गया है अब मुसाफिर 

वह गठरी बांधे सफर के बीच से ही लौट जाना चाहता है;


सागर ने हारकर की है कुछ इस तरह से गुजारिश कि,

जिसे बनाना है दरिया बना ले, समंदर सूख जाना चाहता है !


एक खामोश बैठा परिंदा शजर से बहुत दूर जाना चाहता है,

रहने को कोटर छोटी पड़ रही, आसमां में घर बनाना चाहता है!


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