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बेज़ुबानशायर 143

Fantasy Inspirational Others

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बेज़ुबानशायर 143

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कैसा हुआ समाज है

कैसा हुआ समाज है

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 राजनीति से नीति है गायब,

दिखता केवल राज है।

 छोड़ रहे हैं न्याय नीति सब,

कैसा हुआ समाज है?


न्याय नीति की खातिर पहले,

राजा पद ठुकराते थे।

अपने बचन पालने को खुद,

हरिश्चन्द बिकजाते थे।


अब अतीक से दुराचारियों, 

के सर पर ही ताज है।

 छोड़ रहे हैं न्याय नीति सब,

कैसा हुआ समाज है ?


 प्रजातंत्र का मंदिर संसद,

 गुण्डों से है भरा हुआ।

 जीत रहे गुण्डे जेलों से,

 मतदाता यों डरा हुआ।


 गुण्डों की करतूत देखकर,

 रुक जाती आवाज है।

 छोड़ रहे हैं न्याय नीति सब,

कैसा हुआ समाज है ?


चोरी लूट अपहरण डकैती,

मानव हत्याआसान हुई

पढ़ लिख करके भी नव पीढ़ी,

जाने क्यों हैवान हुई 


बिन कोकीन शराब हेरोइन 

,सजे न उनकी साज है

छोड़ रहे हैं न्याय नीति सब,

 कैसा हुआ समाज है ?


 कार्यअनैतिक कर के ही वे,

डान माफिया बनते हैं।

 पूँजी और बाहुबल के भय,

से हम उनको चुनते हैं।


 राजनीति के संरक्षण से,

 ही होता आगाज है।

 छोड़ रहे हैं न्याय नीति सब,

कैसा हुआ समाज है ?


     


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