राधा और मीरा
राधा और मीरा
नही रहना है मुझे बनके केवल तुम्हारी राधा
ना ही रहना है मुझे बनके केवल तुम्हारी मीरा
सदियों से मैं कृष्ण की राधा ही बनी रही
और जमाना मुझे कृष्ण की मीरा ही कहता रहा
न मुझे मेरे राधा नाम से जाना गया
और न मेरे भजनों से मुझे पहचाना गया
एक सवाल करना चाहती हुँ मैं आज तुमसे
क्या केवल कृष्ण से ही मेरी पहचान थी ?
क्या राधा की अपनी कोई पहचान नही हो सकती थी ?
क्या मीरा के भजन भक्ति में सम्पूर्ण नहीं थे ?
'महाभारत' को वेदव्यास जी ने रचा था
उसमे उन्होंने कृष्ण को ही तवज्जो दी
अगर कोई वेदवती लिखे कुछ ऐसा ही काव्य तब शायद राधा और मीरा Redefine होगी