बचपन
बचपन
एक बार मैंने ज़िन्दगी से
पूछा बचपन क्या है ?
उसने जवाब दिया,
जब ना तो कोई जरूरत थी
और ना ही कोई जरूरी था।
जब जहां चाहे हंस लेते थे
और जहां चाहे रो लेते थे।
जब ना तो कोई टेंशन थी
और ना ही कल क्या होगा
इसकी फिक्र
यह तो हमारा बचपन।
जब तो कुछ पाने की आशा थी
और ना ही कुछ खोने का डर।
जब जो दिल किया कर लेते थे
और जिद करके हर कुछ पा लेते थे।
जब हर छोटी बात पर
कट्टी कर लेते थे
और फिर दो मिनट बाद
अब्बा हो जाती थी
यह था हमारा बचपन।
अब कहां रहे हो खुशियों और
कहां रहा वह बचपन।
जो बच्चा है वह है बचपन
की धुंधली यादें।
अब ना तो हसीन जिंदगी बची है
और ना सुनहरे पल।
बस एक ख्वाहिश बची है
काश ! मुझे फिर मिल जाए बचपन।