अक्सर मै ये सोचता हूँ..
अक्सर मै ये सोचता हूँ..
अक्सर मै ये सोचता हूँ....
खुश करने वाला बचपन का वो खिलौना कहाँ मैंने घुमा दिया,
कागज़ की उस कश्ती को ज़िम्मेदारियों की लेहेरो ने दूर कही बहा दिया..
अक्सर मै ये सोचता हूँ....
की शरारतों का वो सूरज अब किस दिशा में खिला करता हैं,
क्योंकि अब वो लम्हा बस ईद के चाँद सा दिखाई पड़ता हैं..
अक्सर मै ये सोचता हूँ....
उस बचपन के बारे में,जब हाथ में Crayon पकड़कर रंगीन बना देते थे दुनिया,
पर अब दौड़ती भागती इस ज़िन्दगी में,बेरंग सी लगती हैं ख्वाबों की वो तितलियाँ..
अक्सर मै ये सोचता हूँ....
वो दिन,जब मोहल्ले में Sixer मार कर पूरे हफ्ते उसके किस्से सुनाया करते थे,
अब तो दुसरो की मारी Boundaries को HotStar पर देख कर जी लिया करते हैं..
अक्सर मै ये सोचता हूँ....
किस तरह छुट्टियों में एक दूसरे के साथ खेल लिया करते थे,
अब तो Facebook,WhatsApp और Insta पर उन यारों की खैरियत जान लिया करते हैं..
अक्सर मै ये सोचता हूँ....
जिन हाथों में स्वादिष्ट एक रूपये वाली चुस्किया हुआ करती थी,
अब वही हाथ फ़िक्र में सिगरेट के कश लिया करते हैं..
अक्सर मै ये सोचता हूँ....
किस तरह अब सिर्फ इतवार को मन में खुशियों के फूल पनपते हैं,
क्योंकि बढ़ती उम्र की इस चमकान में बचपन के मकान अब कुछ खाली से लगते हैं..