जन पक्ष में लेखनी चले
जन पक्ष में लेखनी चले
सुकून की तलाश में
चलते रहे दिन रात
अब तक मिला नहीं
उसका ठीहा अज्ञात
हर दिन ढलने के बाद
मन को देते हैं दिलासा
कालांतर में शायद छंटे
मेरे जीवन का कुहासा
ग्रह गोचर का असर है
अजब अपनों से हूं दूर
एकाकीपन भरा जीवन
मेरा नियति को भी मंजूर
अध्ययन और लेखन के
प्रति बचपन से आसक्ति
पूर्व जन्म के कर्मों से ही
मिली शायद ये अनुरक्ति
आदिदेव शिव से नित एक
अर्ज़ करता मैं बारंबार
जन पक्ष में लेखनी चले
सतत, उत्साह हो अपार
क्षेत्र, समाज और देश के
मुद्दों की हो सही पहचान
पूर्वाग्रह रहित होकर लिखूं
जन जन के दुख दर्द तमाम।