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Vidhi Mishra

Tragedy

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Vidhi Mishra

Tragedy

बिस्तर की चादर

बिस्तर की चादर

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बिस्तर की चादर बतलाती है,

सुन, तेरी पवित्रता की कहानी सुनाती है।

तू पाक है, नापाक है,

आंकलन का पैमाना बन जाती है,

सुन, तेरे चरित्र की कैसी व्याख्या ये कर जाती है।


जो क्या हुआ बचपन में तू मज़बूत बनने की दौड़ में लड़खड़ाई थी,

उड़ने की चाहत में तूने ठोकरें हज़ार खायीं थी।

गिरी संभली तू सैकड़ों बार, चोट 'उस' जगह भी तूने खाई थी,

बह गया वो 'रक्त' तभी जिसने

तेरे आज पर कलौंछ लागई थी।


बचपन की वो बात थी, पीछे छोड़ जिसे तू आगे बढ़ी,

न महत्व था उस 'रक्त' का, न उस 'चोट' से थी तू डरी।

खूब पढ़ी और सफल बनी तू, है पैरों पर अपने खड़ी,

समाज में सिर ऊँचा उठा कर, अपने सपनों की उड़ान थी तूने भरी।


नन्ही सी एक कली थी तू जो एक जवान फूल बन गयी,

उड़ चुकी थी बहुत तू, अब बारी थी कुछ 'सामाजिक नियमों' के पालन की।

चढ़ी वो मेहँदी, लगी जो हल्दी, शहनाइयां थीं गूंज उठी,

हुए सब अपने पराये, अब ग्रहलक्ष्मी बन गयी तू अपने हमसफर के आंगन की।


हो चुकी थीं सारी रसमें, आ गयी थी रात परीक्षा की,

परिणाम के जिसकी गवाह बनी, 'सफेद चादर' वो बिस्तर की थी।

हुई सुबह जो काली थी, अब तेरी पवित्रता के इम्तिहान की बारी थी।

ग्रह-अदालत लग गयी अब कटघरे में थी तू खड़ी,

सवाल थे हज़ार मन में, उत्तर जिनका वो कोरी 'सफेद चादर' थी।


लांछन अब लग गया था तुझपर, करार दिया गया चरित्रहीन तुझे,

सुनी न कोई दलील उन दकियानूसी विचारधारा के दलालों ने,

नापाक घोषित हो गयी तू, गिर गयी समाज की नज़रों में,

खुद रक्तचरित्र न होकर वो चादर, बन गयी एक नासूर तेरे जीवन में।


तो क्या हुआ जो तूने बचपन में 'वो चोट' खाई थी,

क्या हुआ 'वो रक्त' तेरा बचपन में ही प्रवाहित हो गया

कैसे समझाएगी उन नादानों को तू जिनकी यही एक धारणा थी-

'दाग नहीं है उस चादर पर तो नहीं है कोई चरित्र तेरा।'

अरे अब तू दोषी बन गयी उनके लिए, कुल-चालक से कुलनशिनी हो गयी,

एक पल में सारी दुनिया तेरी वह कोरी चादर उजाड़ गयी।


डरना मत तू, झुकना मत तू, थी न कोई गलती तेरी

फिर से उठ तू, फिर से उड़ तू, दुनिया है तेरी नई

संवार इसको, संभाल इसको, शर्तों पर तू अपनी चल

तू 'नारी' है, कमज़ोर नहीं है, न किसी की मोहताज़ है,

सशक्त है, समर्थ है, सर्वपाक तेरी कहानी है,

बांध सकेगी न तुझे कोई वो बिस्तर की चादर जो समाज की एक बेईमानी है।



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