कमी है
कमी है


हर छोटी-छोटी बात पर
मेरे बड़े-बड़े नखरों की कमी है,
आज फिर उलझनों में कंधे पर
हाथ रख बहलाने वाले की कमी है।
इन बेग़ैरत रातों में उड़ी हुई नींदों को
थपथपा कर वापस लाने वाले की कमी है,
आज फिर लड़खड़ाते इन कदमों को
हाथ थाम कर संभालने वाले की कमी है।
हर छोटे-मोटे मुद्दों पर मीठी सी
नोक-झोंक करने वालों की कमी है,
आज फिर एक रोटी ज़्यादा
खिलाने वाले की कमी है।
हर दर्द को सहारा बन
दूर करने वालों की कमी है,
आज फिर बीते हुए हर लम्हे में
याद तो है पर मेरी मौजूदगी की कमी है।
हर चीज़ में मेरी मनमर्ज़ियों
और ज़िदों की कमी है,
आज फिर घर और
घरवालों की कमी है।
पर खुद को साबित करना है,
एक मुक़ाम को हासिल करना है,
शायद इसीलिए आज फिर दिल में सैकड़ों
अरमान और आंखों में एक अजीब सी नमी है।