बिसात
बिसात
बिछी थी बिसात हर कहीं शतरंज की
मोहरे तो बराबर सजे हुए थे तरतीब से।
मगर जद्दोजहद तो बस
प्यादों के हिस्से आनी थी।
बाकी सबकी अपनी अलग कहानी थी
चौसठ घरों का ये खेल
कुछ इस तरह से सजाना था
शह मिलते देख किसी को
मात पर लाना था।
बाज़ीगरी भी थी
जादूगरी भी थी
सजाकर दोनों को
एक का जनाजा उठाना था।
चाल पर चाल थी
मंत्रमुग्ध दिमाग थे
यंत्रणाओं का दौर था।
पूरे कुनबे की राजनीति
इतने घर में समानी थी
नाकामयाब कोई होगा
कामयाबी तो बस
एक के हिस्से आनी थी।