बिन गुरु होत न ज्ञान
बिन गुरु होत न ज्ञान


श्रीकृष्ण के गुरु होते संदीपन,
श्रीराम के गुरु कहाए वशिष्ठ,
शिक्षक गुरु का होता वो रूप,
सर्वोत्तम स्थान है जन विशिष्ठ।
कवियों ने गुरू महिमा बताई
फिर क्यों दोष लगाता समाज,
अपने दोष छुपाने की खातिर,
शिक्षक की बुराई होती आज,
शिक्षक जग को राह दिखाता,
भावी देश का बनाते आधार,
समाज के हैं वो सजग प्रहरी,
अपने शिष्यों को देता है प्यार।
ज्ञान विज्ञान का होता सागर,
ज्ञान से भरे शिष्य की गागर,
जगत दे बेशक कम सम्मान,
विकसित देश की गुरु शान।
शिक्षक दिवस, शिक्षक का,
आओ करे, नई पहल शुरू,
नतमस्तक हो, उसे देव को
गुरू कहलाता, आखिर गुरू।
शिक्षा पाता विद्वान कहलाता,
पूरे ही जग में सम्मान पाता,
अंधेरा सहकर दीपक जलाता,
अशिक्षा से कुरूप बन जाता।
बिन गुरु होत न ज्ञान जग में,
गुरु धरा पर लाता है उजाला,
युगों युगों से पीढ़ी को संवारा,
गुरु धरती पर सबसे हो प्यारा।