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बीते पल

बीते पल

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अनमोल सुनहरे पल ओझल न हो,

पलकों की पालकी पर बिठा रखी

बीते हुए दशकों से,

पलों की पंखुड़ियों में

कहीं शिकन ना आ जाए,


हर रोज़ कुछ आंसुओं से सींच देती हूँ,

ना मिलना हुआ, ना ईश्वर को मिलाना हुआ।

जीवन एक मालाकार की तरह गुज़रा,

हर रोज़ कुछ शब्दों को पिरोती गई,

हर रोज़ कुछ शब्दों को खोती गई है!


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