भूख राक्षस
भूख राक्षस
ना कभी कोई खबर पढ़ी थी
ना कभी कुछ जाना था।
वीरान बाजार, खाली सड़कें
बड़ा ही अजीब नज़ारा था ।
मालिक ने कहा था कि
कल से काम पर नहीं आना है।
बस अब तुम्हें अपना
घर खुद चलाना है।
चंद नोटों के टुकड़े भी मिले थे
बस अब उसी में सब निभाना है।
खाने का कनस्तर अब
खाली हो रहा था
अधपेट खाना खाकर
पूरा परिवार सो रहा था।
घर वापसी का कोई
साधन भी नहीं था।
पैदल ही निकल पड़े थे वो,
जैसे घर बस यहीं था।
जल्दी ही सब कुछ
ठीक हो जाएगा
खाने को ढ़ेर सारा
खाना आयेगा।
ऐसा कहकर उसने बेटे को कुछ और
दूर पैदल चलने के लिए मना लिया था।
ना जाने कितने ही मील चले आए थे वो
एक उम्मीद की किरण की तलाश में।
पर ना सब कुछ ठीक हुआ था
ना ही 'भूख राक्षस' खत्म हुआ था।
बस चलते चलते एक दिन 'भूख राक्षस' ने
उनकी भूख को हमेशा के लिए सुला दिया था ।
और पूरे परिवार के हर दुख
और पीड़ा को मिटा दिया था।
पर उनके भूखे शवों को किसी
ने हाथ भी नहीं लगाया था।
किसी ने मुन्सिपल्टी को पुकारा
तो कोई पुलिस बुला लाया था।
किसी भयंकर बीमारी के डर से
उन्हें वहीं खुले में जलाया था।
पर जिन्हें किसी बीमारी
का पता भी नहीं था,
उनके अंदर बैठा 'भूख राक्षस'
किसी को भी नज़र नहीं आया था।