भूख और गरीबी
भूख और गरीबी
दो वक्त की रोटी कमाने के लिए पूरी दुनिया दौड़ती है,
रोटी की भूख ऐसी है जो जिंदगी के हर रंग दिखाती है,
अमीर हो या गरीब हो भूख तो हर किसी को लगती है,
भूख का कोई मज़हब नहीं ना यह कोई धर्म देखती है,
ना जाने कितनी ही जिंदगियां यहां रोज भूखी सोती है,
अमीर फेंकता खाना और गरीब के पेट में भूख रोती है,
पेट की भूख इंसान से ना जाने क्या-क्या करवा देती है,
भूख रोटी की चोरी करने के लिए भी बेबस कर देती है,
पेट की भूख की कीमत महलों में रहने वाले क्या जाने,
किसी गरीब से पूछो कैसे भूख निचोड़ कर रख देती है,
मुझे भूख नहीं है ये मजबूरी के शब्द हैं किसी गरीब के,
बहला लेते मन को कि शायद दरवाजे बंद है नसीब के,
पेट की भूख गरीब मासूमों से बचपन ही छीन लेती है,
बचपन की मासूमियत भूख में लिपट कर रह जाती है,
नहीं मांगते वो पिज्जा बर्गर न कोई मिठाई न दूध दही,
बस एक वक्त की रोटी की ख्वाहिश उन्हें रोज रहती है,
हार जाती है गरीब की भूख गरीबी की मजबूरियों में,
कितने आंसू रोती है भूख रोज उनके खाली बर्तनों में,
आखिर क्या गुनाह है इनका जो भूख इन्हें सताती है,
मेहनत करने पर भी दो वक्त की रोटी नहीं मिलती है,
गरीबी और भुखमरी इस कदर छाई हुई है दुनिया में,
मजबूरी में रोटी तलाशते हैं वे गरीब कचरे के ढेरों में,
जिन्हें आसानी से मिल जाती रोटी कद्र नहीं करते हैं,
कितनी आसानी से खाने को कूड़ेदान में फेंक देते हैं,
वही फेंका हुआ खाना कितनों का पेट भर सकता है,
भुखमरी से लड़ते किसी इंसान को राहत दे सकता है,
हमारे देश में प्रत्येक दिन कितना खाना फेंका जाता है,
पर दुर्भाग्य से वो किसी गरीब तक नहीं पहुंच पाता है,
क्यों गरीब के भूख की आवाज़ दब कर रह जाती है,
भूख सताती जीवन भर और भूख ही निगल जाती है,
गरीबी भुखमरी से मौत तक का सफ़र तय करती है,
ये दर्द भरी कहानी किसी एक गरीब की नहीं होती है।