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Savita Singh

Drama

4.9  

Savita Singh

Drama

भुला दें

भुला दें

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कोई कैसे भूल पाए

जो दर्द हैं उठाये


जब सताती ये यादें

भूल जाते सारे वादे


ख़ुश रहने की

जो क़सम है खाई


तोड़ जाती उन्हें

अपनों की जुदाई !


चल ए दिल

कुछ ख़्वाब नये बुनते हैं


कुछ खेल खेलते हैं

कुछ तू भुला

कुछ हम भूलते हैं !


बादलों में चाँद की

लुका छिपी देखते हैं,


तारों को गिनते हैं,

गिनती भूल जाते हैं !


हवाओं की सनसनाहट को

लय बद्ध करके सुनते हैं,


डर जाएँ तो

एक-दूसरे को थाम लेते हैं !


चल ए दिल !

हर ज़ख्म, हर सितम

भुला देते हैं


ग़र न भूल पाएँ

ख़ुद को ही भुला देते हैं


कोई कैसे भूल पाए

जो दर्द है उठाये !


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