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Anshu Shri Saxena

Classics

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Anshu Shri Saxena

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भोर

भोर

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जब भोर की नन्हीं रश्मियाँ उतरती हैं धरा पर

उजास भरतीं प्रकृति के रोम रोम कण कण पर

मन अंतस्तल प्रफुल्ल हो उठता इनके आगमन से

प्रभाकर का स्वागत हो रहा स्वर्णिम आभापुंजों से।

 

उषाकाल का मोहक रक्तिम नील गगन 

पंछियों का उन्मुक्त गान और मंद शीतल पवन

छँटता निशा का घना काला अंधेरा

नित नई सी भोर नया सा सवेरा।

 

देते हमें सदा नया सा संदेसा !

विगत के भूल आगे बढ़ने का भरोसा !

जब दु:ख की काली रात छा जाये,

मन हो विचलित कोई राह नज़र न आये,

तो समझिये बस निकट ही है सुख की भोर !


भरिये मन में आस और बढ़िये नये उजाले की ओर !

नया दिन मिलेगा सदैव बाँहें पसार,

देगा नई उम्मीदें, खोलेगा सुख के द्वार।


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