भिन्न का गणित
भिन्न का गणित
माथा पच्ची करते-करते
झगड़ा करते रानु और मीना बच्ची
गिनती को अभी पछाड़ खिलाई थी,
जोड़-बाकी भी जुगत लगाई थी।
गुना-पहाड़े में भी समझ बनाई थी,
भाग पे कसा-कसी जारी थी,
इस उलझन से उस उलझन तक
गणित की माथा-पच्ची जारी थी।
ये सारी मगज मारी
हमको प्यारी-प्यारी थी
नए रूप में भाग खड़ी थी,
अब तो भिन्न की बारी थी।
पूरे अंको को तो मजे से बाँट रहे थे,
बचे हुए को छोड़ रहे थे,
पर बराबर बँटवारे की
शर्त यहाँ पर भारी थी।
आधा, तिहाई और चौथाई ऐसी-ऐसी
नई समझ की ओर हमारी सवारी थी
सुना था, इनको जाना था,
अब लिखने की बारी थी।
रोटी,बर्फी, केक के खेल में
बराबर बँटवारे की रेल-पेल में
सिखण री जुगत
अभी भी जारी थी।
बाँट-बाँट के जोड़ सीख लिया,
बाँट-बाँट के बाकी,
संदर्भों से खेल-खेल के
बुनियादी समझ बना ली थी।
माथा पच्ची करते-करते
भिन्न के गणित से
हो गई अपनी यारी थी।
बची समझ भी बन जाएगी,
इतनी ना उधम मचानी है,
ल. स. ,ब. स. की जल्दी में
नहीं अधूरी समझ बनानी है।
एल्गॉरिथ्म में हो जाने दो देरी,
हमको गणित बचानी है।।