बचपन की शरारत याद
बचपन की शरारत याद
वह बचपन की शरारत याद है ना ?
वह मम्मी की डांट खाने वाली बातें याद है ना ?
वह दीदी का चोटी खींच कर भाग जाना,
पकड़ में आने के बाद बहुत मार खाना।
वह दोस्तों के साथ छुपा छुपाछुपांतर का खेल ?
दोस्तों संग मस्ती वह कबड्डी का खेल,
गांव की कच्ची पगडंडियों में अकेले तेरा दौड़ना,
बहुत आवाज लगाने पर भी तेरा ना रुकना,
वह चोरी से पड़ोसी का दरवाजा खटखटाना,
दरवाजे खुलने पर चोरी से छुप जाना,
वह स्कूल के समय में चोरी से घंटी बजाना
पता चलने पर फिर वह स्कूल न जाना
फेल हो जाने पर चोरी से रिजल्ट पर नंबर बढ़ाना
पापा को पता लगने पर बोरी के पीछे दुबक जाना।
गो गर्मी के दिन में चोरी से आम तोड़ना।
कोई देख लेने पर वह तेजी से दौड़ कर भाग जाना।
वह बचपन के दिन में देर तक लूडो खेलना,
हारते देख वह चोरी से लूडो का खेल बिगाड़ देना
बचपन की शरारत वाली बात याद आते हैं,
जाने क्यों दिल में हौले से कुछ कर जाते हैं,
पापा के शर्ट से चोरी से पैसा निकालना,
पापा के बोलने पर वह मम्मी का जोर से डांटना,
अब के व्यस्त जीवन से वह बचपन ही अच्छा था
जब ना कोई शर्म ना कोई समझ ना कोई हया थी।
वह देर रात तक तालाब में कूद कूद के नहाना।
भैया के बोलने पर उन्हें पानी मैं जोर से धक्का देना
वह बचपन की बातें बचपन की शरारतें याद आती है
ना जाने क्यों दिल को हौले से गुदगुदा जाती है।