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Mayank Verma

Drama Inspirational Children

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Mayank Verma

Drama Inspirational Children

मां तेरी ममता

मां तेरी ममता

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मेरी फरमाइशों के पकवान बनाती थी हर रोज,

तेरे माथे पर कभी रसोई की गर्मी की शिकन नहीं होती।

खाया है बड़ी नामी गिरामी जगहों पर भोज,

पर उन सबमें तेरे हाथों सी मिठास नहीं होती।


मेरी गलतियों को शरारत का नाम देती रही,

तेरी आंखों की हामी के बाद फिक्र नहीं होती।

मेरी हर नाकामी में भी उम्मीद जगाती रही,

तेरे आंचल में छुपकर कोई परवाह नहीं होती।


मेरी पढ़ाई कराने को खुद पढ़कर मुझे पढ़ाती थी,

तेरे त्याग और तपस्या के बिना मेरी शिक्षा पूरी नहीं होती।

किस्से कहानियों कहकर संसार की रीत सिखाती थी,

हर बात में मकसद रहता था वो अधूरी नहीं होती।


मारा तो तुमने भी है कई बार न जाने किस किस चीज़ से,

पर उन हल्के हाथों की मार में वो लंबी टीस नहीं होती।

समझाई है दुनियादारी, कभी गुस्से कभी तमीज़ से,

तेरी सीख की आज़माइश आज भी कम नहीं होती।


मेरे भले के लिए, कभी सबसे कभी मुझसे लड़ती रही,

गुज़रे वक्त की बातों में भी मेरी हिमायतें कम नहीं होती।

दूर रहकर भी मेरे हर सुख-दुख की खैर-खबर लेती रही,

फ़ोन पर ही सही मगर तेरी हिदायतें कम नहीं होती।


गोद में सर रखकर मेरा पांव हिलाती रहती थी।

इन महंगे गद्दे, तकियों में लेकिन वो राहत नहीं होती।

मेरे सो जाने तक जागकर थपकियां देती रहती थी,

इन बेफजूल के मसलों में अब आंखें बंद नहीं होती।


उंगली पकड़ने से कदम मिला कर चलने तक का सफ़र,

तेरे जले बिना मेरी जीवन ज्योत रौशन नहीं होती।

बदन में दर्द रहता है, ठीक से चल नहीं पाती मगर,

कहने भर से मेरे पास आने को तेरी हिम्मत कम नहीं होती।


घुटनों से चलते थे आज अपने पैरों पर खड़े हैं,

मेरे खाने की चिंता तेरे मन में कभी कम नहीं होती।

दुनिया की नज़रों में हम चाहे कितने ही बड़े हैं।

मां तेरी ममता मगर, आज भी कम नहीं होती।


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