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Sheetal Raghav

Children Stories

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Sheetal Raghav

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उड़न तश्तरी

उड़न तश्तरी

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यह तो कोई उल्टी-सी तश्तरी लगती है,

फंस गई एक बड़ी गेंद इसमें,


यह तस्वीर तो कुछ,

ऐसा ही बयां करती है,

बेचारा जानवर दुविधा में है,

यह प्रकाश कहां से आ गया,


देख कर प्राणी जगत का,

हर पक्षी, हर जानवर तो क्या,

इंसान तक घबरा गया,


क्या नायाब यह चीज,

इंसान ने बना डाली,

उल्टी करके थाली,

बीच में गेंद फंसा डाली,


यह तो कोई उलट कर रखी हुई,

थाली सी लगती है,

उलझ गई यह अंनभुज,

अदभुत पहेली सी लगती है,


कुदरत के इस चलचित्र में या,

अचल और विचित्र,

स्तब्ध कर देने वाले,

छायाचित्र में हमें,

ऐ यार सोचने पर विवश करके,


हमारी क्या हालत,

इस चित्र ने कर डाली,

समझ में नहीं आता कुछ भी,

समझ नहीं आता !


यह किस इंसान ने थाली,

उल्टी करके गेंद फंसा डाली है?

यह एक तश्तरी है, पर,

यह उल्टी क्यो है,


यह जानवर नुमा,

क्या आकृति इसमें से निकली है भइया?


हे प्रभु,

क्या इंसान ने अपनी,

यह सूरत भी बदल डाली है,

अब तो मैं भी,

अपनी अकल पर गच्चा खा गया,

कच्चा कच्चा सा ही सही,

पर कुछ-कुछ मुझे याद आ गया,


बताया था,

मास्टर साहब ने,

यह तो उड़ने वाली तश्तरी होती है,

जो दूसरे ग्रह से,

जमीन पर विचरने आ जाती है,


अद्भुत से दिखने वाले,

बोनो बोनो की आकृति,

प्राणी नुमा लोगो को धरती पर ले आती है,

कभी-कभी वजन के मारे,

मेरी प्यारी धरती धंस जाती है,


हाय हाय !

यह तश्तरी,

हमारी धरती पर,

बड़ा सा छेद कर जाती है,


यही लगता है,

यही वो उडने वाली,

तश्तरी है

जो जमीन पर घूमने,

कभी - कभीआ जाती है,


पर यह विचित्र माया,

देखो !

सुना है,

बड़े नटखट यह बोने होते हैं,


कभी-कभी सुना है,

यह चढ़ना तश्तरी पर भूल जाते हैं,

या फिर लुढ़क जाते हैं

अरे रुक जा,


ओ उड़न तश्तरी,

यही जोर-जोर से चिल्लाते हैं,

हमारे यहां तो,

मेहमान तश्तरी में खाते हैं,


पर यह विचित्र समय आया है

यहां तश्तरी में रखकर ही,

अजीब से दिखने वाले बोने उडाये जाते हैं,


वाह रे उड़ने वाली तश्तरी,

उड़न तश्तरी।



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