मासूमियत
मासूमियत
हाथों में कुछ चोटे लिए वो मासूम रास्ते पर चल रहा था,
अपने पैरों से रास्ते की मिट्टी को वो ठोकर मार रहा था।
जिंदगी ने उस मासूम से उसका सब कुछ छीन लिया था,
प्यारी सी उसकी आंखों को आसूं से भर दिया था,
मां का वो आंचल पिता का वो दुलार सब छूट गया,
उसका जीवन किसी कांच के खिलौने की
तरह पल भर में गिरकर बिखर गया।
हाथों में कुछ चोटे लिए वो मासूम रास्ते पर चल रहा था,
अपने पैरो से रास्ते की मिट्टी को वो ठोकर मार रहा था।
छोटी सी उम्र में ये वक्त उसे बड़ा बना रहा है,
उसके कंधो पर तजुर्बे की गठरी रख रहा है,
उस मासूम की किस्मत आखिर क्यूं ऐसी लिखी,
क्यूं दर्द और बेबसी से उसकी राहें भर दी।
हाथों में कुछ चोटे लिए वो मासूम रास्ते पर चल रहा था,
अपने पैरो से रास्ते की मिट्टी को वो ठोकर मार रहा था।
उसका तो सब कुछ जा चुका था,
उसका जीवन समाज के तानों से भर चुका था,
उसकी मासूम बातों से लगता है वो दुनियादारी से काफी परे है,
उसके दरमियां सूनेपन और खामोशी के ढेरे है।
हाथों में कुछ चोटे लिए वो मासूम रास्ते पर चल रहा था,
अपने पैरो से रास्ते की मिट्टी को वो ठोकर मार रहा था।
धीरज धरना अब उसे कैसे सिखाऊं,
सब भूल कर आगे बढ़ना उस नादान को कैसे सिखाऊं,
ईश्वर की परीक्षा के आगे वो मासूम हार गया,
आज हालात जीते गए और उसका बचपन हार गया।