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Rajeshwari Joshi

Children

4  

Rajeshwari Joshi

Children

पक्के घरों से

पक्के घरों से

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पक्के घरों से, झोपड़े अच्छे थे

ना था कोई डर, ना खतरे थे

कोरोना के भी ना, कोई किस्से थे 

लोगों के दिल भी ,सीधे सच्चे थे

पक्के घरों से, झोपड़े अच्छे थे


सारा *गाँव, मिलकर गाता था

त्यौहारों को, साथ मनाता था

साॅझे थे सुख- दु:ख, साॅझे सपने थे

पक्के घरों से तो, झोपड़े अच्छे थे


किसान खेतों में, हल चलाता था

कितनी मेहनत से, फसल उगाता था

बैलों के गले की घंटी, टुनटुन करती थी

थी बहुत गरीबी, फिर भी दिल हॅसते थे


खेतों में मिलकर, सब धान लगाते थे, 

मिलकर सब, रोटी अचार खाते थे

सब के दुख थे, लेकिन दिल मिलते थे

होठों पर गीत, सबके सजते थे


खेतों में सावन, हॅसता- गाता था, 

बागों में झूले, खूब झूलाता था

पनघट में गोरी ,कितना हॅसती थी

घूंघट में गोरी, कितनी सजती थी


सारा घर मिलकर ,साथ खाता था

मक्के की रोटी पर साग भाता था 

सांझे थे चूल्हे, भले ही कच्चे थे  

पक्के घरों से, झोपड़े अच्छे थे


चूल्हे की रोटी में, कितनी खुश्बू थी

रोटी मक्खन से, चुपड़ी होती थी

दही- मट्ठे से ,भोजन सजता था

साथ में गुड़ भी, थोड़ा होता था


बचपन के वो दिन कितने अच्छे थे

कितने खुश थे, जब हम बच्चे थे

बेफ्रिकी के वो दिन, कितने अच्छे थे

पक्के घरों से, झोपड़े अच्छे थे, 


ढोल, नगाड़े ,मेलों में बजते थे

ऊँचे हिंडोले कितने सजते थे

गाँवों में दंगल कितने होते थे

गाँव में कबूतर, मुर्गे भी लड़ते थे


बैल गाड़ी, धीरे- धीरे चलती थी

होठों में, गीतों की लड़ियाँ सजती थी  

पगडण्डी थी,भले ही रस्ते कच्चे थे

पक्के घरों से, झोपड़े बहुत अच्छे थे


रात में कजरी , भीखू गाता था

भोला खजंड़ी भी, खूब बजाता था

साथ में हुक्के भी, गुड़- गुड़ करते थे

चौपाल में किस्से, भी कितने होते थे


बचपन के वो दिन, कितने अच्छे थे

बेफिक्री के वो दिन कितने अच्छे थे

सांझे थे चूल्हे, भले ही कच्चे थे

पक्के घरों से, झोपड़े अच्छे थे।


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