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Rajeshwari Joshi

Abstract

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Rajeshwari Joshi

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कब तक

कब तक

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कब तक बाँधोगे बाँध, 

मन की नदिया के धारों पर. 

टूट जायेंगी सभी दीवारें, 

नदिया को तो बहना है.


कब तक रोकोगे तुम, 

रोशनी को चिनी दीवारों से.

मन के रोशनदान खुलेंगे, 

उजालों को तो झरना है.


कब तक दोगे पहरे सपनों पर, 

कब तक हाथों से बाँधोगे.

सपनों पर बस नही किसी का, 

उनको तो पूरा होना है.


कब तक बाँधोगे जंजीरे, 

रूढ़ियों की पाँवों में.

पंख फैलाये मुक्त गगन में, 

मुझको तो अब उड़ना है.


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